विभीन्न नामो से प्रसिद्ध वाराणसी का आज ही के दिन 24 may 1956 को प्रदेश के मुख्यमंत्री डाँ सम्पूर्णानंद द्वारा प्रशासनिक तौर पर इसका नाम वाराणसी को इसी दिन स्वीकार किया गया था
धर्म की नगरी वाराणसी का इतिहास बहुत प्राचीन है
ऐसा माना जाता है कि इस नगरी का इतिहास सबसे प्राचीन है ।कुछ का मत है कि काशी नगरी पुराणों से भी पुरानी है .प्रमुख इतिहास व पुराणों मे काशी नगरी के महिमा की चर्चा आज भी मिलती है यह नगरी वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम का केद्र था।
पुराणो के अनुसार यह बताया गया गया है कि ये इतिहासो से भी प्राचीन विश्व प्राचीन नगरी है ।
पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने लगभग 5000 साल पूर्व ही काशी नगर को बसाया था.इसे कासिपुर तथा कासिनगर के नाम से जाना जाता था.मत्सय पुराण के अनुसार इस नगर की चर्चा इसमे की गयी है .पुराणो के अनुसार वरुणा व असि नदियो के बीच मे बसने के कारण ही इसका नाम वाराणसी पड़ा था।काशी नगरी प्राचीन समय से ही बहुत से धर्मो का केन्द्र रही है.
जैन धर्म व बौद्ध धर्म के अनुसार काशी का नाम सुदरशनपुरी,और पुष्पावती भी हुआ करते थे।
वाराणसी व्यपार के मुख्य केन्द्र होने के कारण लोग यहा व्यपार के लिए आए और यही बस गये।अग्रेजों ने इसे बेनारस कहा करते थे इस धर्म नगरी के महत्ता तथा छवि को देखते हुए यहा बहुस से लोग बस गये।
बनारस का नाम सुनते ही उनके मन मष्तिक मे तुरन्त बनारसी पान,बनारसी साड़ी,मंदिर,मस्जिद,घाट,गंगा आरती का नाम सुनते ही जेहन मे एक रौनक सी आ जाती है।इस लिए लोग यहा पर आते है तो उनको जाने का मन नही करता है क्योकि वे लोग कहते है कि वो बनारस को घूमने नही जीने आते है।
यहा पर आने वाले लोगो का कहना है कि यहा पर आने के बाद कही और जाने की इच्छा नही होती है।
अग्निपुराण मे इसको नासी के नाम से भी जाना जाता है।
मत्सयपुराण मे भी वाराणसी नगरी का जिक्र है
लोगो का ऐसा विश्वास है कि यह भगवान शिव की यह पवित्र नगरी है और यहा पर मरने के बाद मोक्क्ष की प्राप्ति होती है।इसलिए इस सुंदर और आनंदायक नगरी मे आये हुए लोग यहा से जाना नही चाहते।
भगवान शिव की इस नगरी वाराणसी का महत्व आज भी कम नही है