हमारे भारत देश की मिट्टी में वर्षो से ऐसे वीरो ने जन्म लिया जिनके साहस और वीरता के सामने दुश्मन भी नतमष्तक हो गए। इन देशभक्तो की वीरता और साहस के प्रमाण हमे आज भी इस देश की मिट्टी में महसुस करने को मिलता है।आज हमारा देश इन जैसे व्यक्तीयो के जन्म लेने पर गर्व महसुस करता है। इसलिए हमें गर्व है कि हम इस भारत की मिट्टी में जन्म लिए है जहा पर ऐसे वीर ने जन्म लिया था।
इनकी वीरता की कथाएं वर्षो तक पीढी दर पीढी चलती रहेगी जो हमारे देश की शान बनकर हर व्यक्तीयो के अंतरात्मा में निवास करेगी। आज हम उस महान राजा पोरस की बात करेंगे जिसने विश्व विजेता सिकंदर को भी वापस जाने पर मजबुर कर दिया। इस लेख में राजा पोरस व सिकंदर (Interesting information about Sikandar and King Porus) के बीच जानकारी दी गयी है।
राजा पोरस व सिकंदर का परिचय
झेलम और चिनाब नदियों के बीच बसा एक छोटा राज्य जहाँ पर राजा पोरस (porus) शासन करते थे।वह एक ऐसा राज्य था जिसकी सेना छोटी थी लेकिन बहुत ही वीर और साहसी थी। उनकी सेना में तीन हजार पैदल सैनिक तथा तीन सौ रथी योद्धा,चार हजार घुड़सवार थे तथा इसके अलावा एक सौ तीस हाथियो की फौज थी।
वही मैसेडोनिया (macedonia) के राजा सिकंदर ( Alexander )जिसने अपनी छोटी सी उम्र मे दुनिया को जितने का सपना लेकर चला था
उसने राज्य के लिए अपने भाईयों तक को मरवा दिया था। उसने अपनी इतनी शक्तीशाली सेना तैयार किया कि उसकी विशाल सेना को देखकर बडे़-बड़े राजा बिना युद्ध किए अपनी पराजय स्वीकार कर लेते थे।
सिकंदर की सेना बहुत शक्तिशाली थी इसलिए उसने बहुत से देशो पर फतह हासिल की।
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सिकंदर का भारत पर नजर
जब सिकंदर पुरे देशो को अपने अधीन करके भारत की ओर रुख किया तो उसके सामने बहुत से भारत के राजाओ ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।लेकिन एक राजा ऐसा था जिसने सिकंदर की अधीनता को अस्वीकार कर दिया और इतना ही नही इसने हमले का प्रतिउत्तर भी देने को कह दिया था।
राजा पुरु की सेना भले ही सिकंदर की सेना से छोटी हो लेकिन इनका हौसला और आत्मविश्वास इतनी मजबूत थी कि ये सिकंदर के किसी भी आक्रमण का उत्तर देने के लिए तैयार थे।
यवन सेना व मलयकेतु के बीच युद्ध
जब राजा पोरस ने सिंकदर की अधिनता अस्वीकार कर दिए तो सिकंदर आगबबूला हो गया और अपनी सेना को सज्ज करके पोरस से युद्ध करने के लिए चल दिया लेकिन उसके सामने एक बड़ी चुनौती थी झेलम नदी को पार करना क्योंकि पुरु के साहस और वीरता के साथ माता झेलम का भी आशिर्वाद था।सिकंदर भी बहुत प्रयत्न किया की झेलम को पार करने का लेकिन उसका प्रयास असफल हो जाता।हलाँकि सिकंदर भी जानता था कि राजा पुरु को पराजित करना असान नही है। तब उसने झेलम नदी को पार करने का फैसला किया और उसको रास्ता भी मिल गया उसने रात के समय में लगभग ग्यारह हजार सैनिको के दल के साथ उत्तर दिशा की तरफ चल दिया।और इधर राजा पोरस को भी मालूम हो गया था कि यवन उनकी सीमा में प्रवेश कर चुके हैं। इन्होने अपने पुत्र मलयकेतु को यवनो से युद्ध करने के लिए भेज दिए और इस युद्ध में मलयकेतु वीर गति को प्राप्त हो जाती है।अब आगे सिंकदर के सामने अब केवल राजा पोरस बचते है।
राजा पोरस व सिकंदर के बीच युद् ध
अब राजा पोरस और सिकंदर के बीच युद्ध प्रारम्भ हो गया दोनो तरफ की सेनाएं आमने सामने थी तब पुरु ने अपने एक सौ तीस हाथियों का दल यवन की तरफ हमला के लिए छोड़ दिए।इस हाथियों के दल ने यवन सेना के लगभग आठ हजार सैनिको को तहस नहस कर दिया।जिससे यवन सेनापति सिकंदर भी पुरु की युद्ध रणनीति को देखकर अचम्भित हो गया।लगभग यह युद्ध आठ घंटे तक चलता रहा फिर भी यवन सेना को जीत नही मिली इस भयंकर युद्ध में दोनो तरफ के जान-माल की हानि हुई लेकिन इस युद्ध में यवन सेनापति को अहसास हो गया कि उसका कैसा एक वीर-निडर योद्धा से पाला पड़ा है वह भी पुरु जैसे वीर जैसे योद्धा को देखकर उसके वीरता के आगे नतमष्तक हो गया।
पोरस व सिकंदर के सबंध में भ्रांतिया
बहुत से लेखो में यह राजा पुरु के बारे में बताया गया है कि वह वीर थे परन्तु स्वार्थी थे।लेकिन राजा पोरस के वीरता से यह स्पष्ट अनुमान लगाया जा सकता है दुनिया को जीतने वाला सिकंदर का सपना भारत जैसे देश पर आकर रुक गया केवल पोरस जैसे योद्धा का भारत में रहने के वजह से ।
सिकंदर भारत देश के छोटे-छोटे राज्यो को अपना अधिन करके सपूर्ण भारत राष्ट्र को अपने अधिन करने का प्रण टुटा तो केवल राजा पोरस के वीरता के कारण ।
पुरा भारत का राज्य यवन के गुलामी के कगार पर थे लेकिन इस अधिनता के बंधनो को तोड़ने वाला सिर्फ वही वीर पुरुष था राजा पोरस।
जहा पर पुरा देश को अपने अधिन करने वाला सिकंदर को वीरता से मुहतोड़ जबाब देकर भारत देश की मर्यादा की रक्षा करने वाला वीर पुरुष पोरस था।
अगर राजा पोरस स्वार्थी होते देशभक्त न होते तो वो भी सिकंदर की अधिनता स्वीकार करके अराम से अपना राज्य चलाते रहते लेकिन फिर भी उन्होने युद्ध किया था किस कारण से । कारण एक ही ओर इसारा कर रहा है कि राजा पोरस वीर के साथ-साथ देशभक्ती भी उनके अंदर रही होगी।
तो हम आखिर में यह कैसे कह सकते हैं कि राजा पुरु वीर थे परन्तु स्वार्थी भी थे।
इतिहासकारो का मत
राजा पोरस के संबध में बहुत से इतिहासकारो का भिन्न-भिन्न प्रकार का मत है। उनके सबंध में किसी भी भ्रांतियो का ठोस साछ्य नही है इस वजह से स्पष्ट यह कहना उचित नही है कि राजा पोरस की हार हुई थी या जीत तथा राजा पोरस स्वार्थी थे देशभक्त नही थे या सिंकदर ने उनकी वीरता और साहस को देखकर उनसे मित्रता कर लिया।बहुत से इतिहासकार मानते हैं कि सिकंदर शराबी और क्रुर शासक था जिसने राज्य के लिए अपने भाई की हत्या करवा दिया। ये सब लेखो से निष्कर्ष यही निकलता है कि सिंकदर जब अपनो का नही हुआ तो वह दुश्मन के प्रति इतना दरियादिली क्यों दिखाएगा। क्या पता पोरस के साहस और वीरता के आगे या उसको लगातार युद्ध में असफलताओ को देखकर उसने पीछे हटने का फैसला कर लिया हो।
पोरस व सिकंदर के युद्ध की स्पष्टता
पोरस और सिकंदर के सबंध में स्पष्ट कहना रहस्य हैं लेकिन हम यह स्पष्ट समझ सकते है कि जो राजा कभी हार का स्वाद नही चखा था तो वह भारत से ऐसे कैसे जा सकता है जरुर पोरष वीर सेना के सामने सिकंदर को जीत का कोई रास्ता नही दिख रहा होगा।ग्रीस के इतिहास में इस युद्ध का जिक्र हुआ है और उसमें यह बताया गया है कि झेलम के किनारे जो युद्ध लड़ा गया था उसमें सिकंदर की जीत हुई थी।लेकिन भारतीय इतिहासकारो का मानना है कि इसमें पोरस की जीत हुई थी।क्योंकि झेलम के किनारे जो युद्ध हुआ था उसमें सिकंदर की सेना लड़ते-लड़ते थक गयी थी और उनका हिम्मत जबाब देने लगा था इसलिए सिकंदर ने पोरस से संधि कर ली और वापस अपने देश लौटकर चले गए।
डिस्कलेमर - यह लेख समान्य अध्ययन के अधार पर लिखा गया है अत: यह पोस्ट किसी भी एतिहासिक तथ्यो का स्पष्टीकरण व अवहेलना नही करता है।
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